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नज़्म
''मीरा-जी को मानने वाले कम हैं लेकिन हम भी हैं
'फ़ैज़' की बात बड़ी है फिर भी अब वैसा कौन आएगा''
जमीलुद्दीन आली
नज़्म
फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़्साने हों